सभी प्रिय दैवी भाइयों और बहनों को होली पर्व की हार्दिक बधाई आज सारा विश्व दुःख की होली खेल रहा है क्योंकि सभी एक दूसरे पर पांच विकारों व उनके वंशों के रंगों की बौछार कर रहे हैं । कोई काम का रंग , कोई क्रोध का रंग , कोई लोभ का तो कोई मोह के रंग से रंग रहा है, स्वार्थ, इर्ष्या, द्वेष, घृणा, अमानवता, आकर्षण और आवश्यकता के सूक्ष्म रंग से तो अधिकतर कोई बचा ही नहीं है । इन सबके मूल में है देह अभिमान का रंग जिसके कारण आज आत्मा बदरंग हो गयी है । उसका ओरिजिनल ( वास्तविक ) गुण रूपी रंग जो ज्ञान, शान्ति, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति, आनंद का है वह छिप गया है और ऊपर यह विकारों का कीचड़ आ गया है । तो आओ इस नयी दुनिया के आगमन के पहले सभी को आत्मिक रंगों से रंगकर सारे विश्व को आत्ममय बनायें । यह आत्मिक रंग एक परमात्मा के सत्संग द्वारा प्राप्त होती है । शिव परमात्म पिता नयी दुनिया के स्थापनार्थ कल्प कल्प संगमयुग में अवतरित होकर अपने आत्मा रूपी बच्चों को अपने संग के रंग से रंगकर आप समान पवित्र बना देते हैं । यही है सच्ची होली मनाना । लेकिन होली बनने वा होली मनाने के लिए