इस प्रथम पोस्ट में समाप्ति वर्ष में २४ कैरट सम्पूर्ण बनने के लिए २४ पॉइंटस शेयर कर रहा हूँ जिससे आपका पुरुषार्थ तीव्र हो सके
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समाप्ति वर्ष में २४ कैरट सम्पूर्ण बनने के लिए २४ पॉइंटस
१) अमृतवेला
(२.० से ४.४५ AM ) को ठीक करने का पुरुषार्थ अवश्य करना है । यह वेला मिस न होने के साथ साथ पावरफुल और लवफुल हो इस पर भी
ध्यान देना है । बाबा के महावाक्य हैं “बच्चे तुम सिर्फ अपना अमृतवेला ठीक
करो तो मैं तुम्हारा सब कुछ ठीक कर दूँगा ।
२) बाबा
की साकार
और अव्यक्त मुरलियों पर अधिक से अधिक मनन चिंतन करें । सेवाकेंद्र पर क्लास में मुरली
सुनने से संगठन का विशेष बल और वायुमंडल का अतिरिक्त सहयोग मिलता है ।
३) नुमाःशाम
अथवा संध्याकाल योग ( ६.३० से ७.३० PM ), अकेले या संगठित रूप से अवश्य करें जिसमें विश्व की आत्माओं
वा प्रकृति प्रति योगदान (सकाश ) देना है ।
४) रात्रि
को सोने
से पहले कम से कम १५ –
३० मिनट योग करें ,
यदि हो सके तो साकार या अव्यक्त मुरली पूरी या सार पढ़कर अंत में बाबा को चार्ट
देकर श्रेष्ठ संकल्प करके बाबा की याद में सोना है । इससे विकर्मों के बोझ से हलके होने में मदत मिलेगी और
दूसरे दिन की शुरुआत श्रेष्ठ
संकल्पों से
होगी ।
५) सेवाकेंद्र
से कनेक्शन जरुर
रखें । बाबा
के कमरे में
कुछ समय के लिए योग अवश्य करें इससे आत्मा की बैटरी चार्ज हो जायेगी और कर्मक्षेत्र में श्रेष्ठ स्थिति बनी रहेगी ।
६) बाबा
और माया दोनों
के बहुरूपी कार्य हैं और दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं इस बात को ना भूलें और माया से हर पल जागरूक रहें ।
७) अपने लक्ष्य और जिम्मेवारी प्रति सतर्कता रखनी है । पुरुषार्थ और पढ़ाई अंत तक चलनी है इसमें तनिक भी आलस्य और अलबेलापन ना आये इसकी खबरदारी रखनी है ।
इसके लिए सदा उमंग
उत्साह में
रहना जरुरी है ।
८) विस्तार
से सार
में अधिक
रूचि रखें । आत्मा
बिंदी, शिवबाबा बिंदी ड्रामा बिंदी इसमें ही सारा विस्तार समाया हुआ है ।
९)
शब्दों
से अधिक अपने कर्मों
द्वारा गुणों को दर्शायें ।
१०) तन मन
धन तीनों
को सेवा में सफल करने पर अटेंशन
हो । कुछ
नहीं कर सकते तो सदा रहमदिल बन सर्व को
दुआएं दो दुआएं लो । यह सहज और शक्तिशाली सेवा है जिसमें समय और मेहनत कम
लगती है और रिजल्ट ज्यादा निकलती है ।
११) चारों
ही सब्जेक्ट पर
ध्यान देना जरुरी है पर वर्तमान समय अनुसार दैवी गुणों की धारणा पर अधिक फोकस हो क्योंकि बाकी सब्जेक्ट पर ध्यान देने में
हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है अब अपने चलन और चेहरे द्वारा स्वयं को और बाप को प्रत्यक्ष करने का समय आ गया है, इससे ही
वास्तविक प्रत्यक्षता होगी पढ़ाई
की और पढ़ाने वाले की । आचार,
विचार, उच्चार और आहार शुद्धि में
सभी धारणाओं का समावेश हो जाता है ।
१२) जब तक बेहद की दृष्टि और आत्मिक दृष्टि नहीं बनेगी तब तक समझना मंजिल
अभी दूर है।
१३) विकार
और दैहिक आकर्षणों से अब
इच्छा
मात्रम अविद्या होनी
चाहिए । यह तभी संभव है जब यह हमारे संकल्पों और स्वप्न में भी आना बंद कर दे ।
१४) अन्दर एक बाहर दूसरा ऐसे दोहरा व्यक्तित्व वाला ना
बने नहीं तो बीच
मझधार में अटक
जायेंगे । सच्चे और
साफ़ दिल वाले ही
भगवान को पसंद है ।
१५) श्रेष्ठ कर्म तुरंत करें और बुरे
कर्म करने के पहले बार बार सोचे, हो
सके तो बापदादा को सामने रख कर विचार करें, सूक्ष्म मदत मिलेगी ।
१६) जीवन
में हर बात में बैलेंस जरुरी है यही सर्वश्रेष्ठ
साधना है और
बुद्धि
की स्पष्टता यही सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक है क्योंकि बैलेंस से जीवन में स्थिरता आती है तो स्पष्टता हमें सही दिशा की ओर
उन्मुख करता है और अंत में निरहंकारी
और नम्र बनाता
है ।
१७) प्रेम और संतुष्टता का गुण बहुत ही आवश्यक है
क्योंकि सर्वप्रति प्रेम
ही सुखी दुनिया का आधार है और संतुष्टता सर्वप्रप्तियों का आधार है । जिसमें ये दोनों गुण हैं उससे
दूसरे सभी भी प्रेम करते हैं और संतुष्ट रहते हैं जिससे उसका दुआओं का और पुण्य का खाता जमा होता रहता है ।
१८) एकांत वासी,
मौन और विचार सागर मंथन इन
तीनों का अभ्यास आपको अशरीरी
स्थिति बनाने
में मदत करेगी ।
१९) स्वदर्शन
चक्र अथवा पाँच स्वरुप और ट्रैफिक कण्ट्रोल का अभ्यास बीच बीच में करते
रहें, इससे मन समर्थ बन दैवी गुणों का विकास होता है । परदर्शन, धूतीपना अथवा व्यर्थ
बातों में
अपना बहुमूल्य समय ना गवाएँ । संगम का अमूल्य समय सारे कल्प में एक बार ही मिलता है यह स्मृति में रख
समय सफल करें वर्ना अंत में पश्चाताप ही करना पड़ेगा ।
२०) अहंकार एक क्षण में ही सभी कमाई चट कर पद भ्रष्ट करने का समार्थ्य रखता है । कृतज्ञता, नम्रता के गुण और निमित्तपन का भाव है तो अहंकार को स्थान
नहीं मिलेगा । रेस करने की मनाही नहीं है पर रीस ना करें ।
२१) याद के
चार्ट को ४ से ८ घंटे तक बढ़ाओ, इसके
लिए एक स्थान पर ही बैठ कर योग नहीं करनी है पर कर्म करते हुए याद जरुरी है क्योंकि यही अभ्यास अंत समय में अचल अडोल स्थिति बनाने में और अंतिम समय की सेवा में मदद करेगा । देही अभिमानी , फ़रिश्ता स्थिति और बीज
रूप अवस्था इन
तीनों को योगाभ्यास में जरुर शामिल करें ।
२२) जो स्व चेकिंग कर स्व को चेंज करेगा वही अपने संस्कारों को परिवर्तन कर सकेगा ।
२३) बीच बीच में अब घर जाना है और नयी दुनिया में आना
है
अर्थात मुक्ति
धाम और जीवन मुक्ति धाम की स्मृति का अभ्यास करते रहें
इससे नष्टोमोहा और बेहद के वैरागी बनने में सहयोग मिलेगा ।
२४) आखिर में, मन्मनाभव, एक बाप दूसरा न कोई ,एक बल
एक भरोसा यही सर्वश्रेष्ठ तपस्या है, इनको जो अमल में लायेगा और हर घड़ी अंतिम घड़ी समझते हुए बहुत काल के अभ्यास द्वारा सदा एवररेडी रहेगा वही अचानक के सेकंड का फाइनल पेपर में पास हो आगे नंबर लेगा ।
****** ओम शांति ******
बी.के अनिल कुमार
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