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आत्मा के ७ गुण और सकाश - Hindi

इस पोस्ट में आत्मा के ७ गुण तथा इन सात गुणों द्वारा सकाश कैसे देना यह बतलाया है I

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                             सप्त रंगों द्वारा आत्मा के सात गुण दर्शाया है

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    आत्मा के ७ मौलिक स्वभाव (गुण)

    परमात्मा से विरासत में मिली हुई आत्मा के सात जन्मजात गुण हैं । आत्मा अष्ट शक्तियाँ और सात गुणों सहित एक चैतन्य ज्योति बिंदु है  आत्मा के सात गुण हैं पवित्रता शांतिप्रेमसुखआनंदशक्ति और ज्ञान । जब हम अपने आत्मिक स्वरुप में स्थित रहते हैं तब आत्मा के सातो गुणों की महक से आत्मा में एक विशेष चमक बढ़ जाती है जो प्रायः किसी भी आत्मा को अपनी तरफ चुम्बक की तरह आकर्षित कर लेती है जैसे हम हरियाली की तरफ आकर्षित होते हैं । इसलिए ही बाबा ने हमें रूप बसंत बन कर रहने का डायरेक्शन देते हैं अर्थात अपने को आत्म निश्चय कर आत्मा के सातो गुणों में रमण करना और सम्बन्ध संपर्क में आने वाली सर्व आत्माओं को अपने प्रत्यक्ष कर्मों और गुणों से संतुष्ट कर ख़ुशी प्रदान करना । तो आइए इन गुणों का स्मरण कर उनको अपनी वृत्तिदृष्टि व कृति में उतारें अर्थात उनके साथ जियें 

    १.      ज्ञान :  

        सात गुणों में आत्मा का पहला गुण है ज्ञान । सर्वप्रथम उसे आध्यात्मिक ज्ञान चाहिए जिसे सत्य ज्ञान भी कहते हैं । पहले स्वयं याने आत्मा का ज्ञान, दूसरा परमात्मा याने रचयिता का ज्ञान और तीसरा रचना याने सृष्टि का ज्ञान । मनुष्य जीवन में सबसे बड़ा अज्ञान अगर है तो वह है देह अहंकार जिसके कारण ही आज विकारों का साम्राज्य स्थापित हो गया है, परिणामस्वरूप दुःख, पीड़ा, अशांति, अत्याचार, भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है । ज्ञान कर अर्थ है समझ, विवेक । सत्यज्ञान ही वह रोशनी है जिसके कारण यह अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश होता है । इसलिए कहते हैं Knowledge is Light जिससे फिर Might  मिलती है ।

    वास्तव मे ज्ञान सारे गुणों और शक्तियों का स्रोत है । भौतिक जगत में भी ज्ञान के द्वारा ही पहले जानकारी मिलती है जो फिर समझ और अनुभव में तब्दील हो जाती है । ज्ञान के द्वारा हमें अपनी बुद्धि को विस्तार करने का असीमित अवसर प्राप्त होता है । इसी तरह आध्यात्मिक जगत में भी ज्ञान द्वारा ही आत्मिक गुणों और शक्तियों का विकास होता हैआत्मा को अपने स्वरुप और मानव जीवन के श्रेष्ठतम लक्ष्य की पहचान मिलती है । आध्यात्मिक ज्ञान मानव के अहंकार को नष्ट कर देता है । निरहंकारी और नम्रचित्त बनते है आपसी सम्बन्ध अथवा रिश्ते प्रेम, स्नेह और सहयोग के सुदृढ़ आधार पर मधुर बन जाते हैं । आध्यात्मिक ज्ञान से मानव जीवन एवं पारिवारिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक सम्बन्ध श्रेष्ठ एवं भरोसेमंद बनते हैं । आध्यात्मिक  ज्ञान अथवा सत्य ज्ञान का स्रोत सिर्फ़ एक परमात्मा ही है जिसे ज्ञान का सागर कहते हैं ।

     

    २.       पवित्रता :

    सात गुणों में आत्मा का दूसरा गुण है पवित्रता  पावन बनना ही नंबरवन करैक्टर है  पवित्रता को सुख शांति की जननी ( mother of all values ) कहा जाता है । जहाँ विचारों की शुद्धि हो, व्यवहार की शुद्धि हो, भावनाओं की शुद्धि हो वही पर इंसान को अच्छा लगता है । वहाँ पर उसे सुख शान्ति की भासना मिलती है । क्योंकि वही पर निःस्वार्थ प्रेम पनपता है ।
    पवित्रता का अर्थ केवल ब्रह्मचर्य नहीं है क्योंकि ब्रह्मचर्य सिर्फ़ भौतिक शरीर से पवित्र रहने को माना जाता है ।वास्तव मेंसही अर्थ तो मनबोल और कर्म की शुद्धता है   हम आम तौर पर शरीर  की शुद्धता को पवित्रता समझते हैं ।  एक व्यक्ति की सोच अगर शुद्ध हो तो हम उनको संत या महान आत्मा कहते हैं ।हमारे मन से विचारों की सृष्टि होती है ।  इसलिए अगर विचार पवित्र हो तो जो बोल हम बोलेंगे, जो कर्म करेंगे वो भी पवित्र, श्रेष्ठ और सार्थक होगा ।  

     ३.       प्रेम :

       सात गुणों में आत्मा का तीसरा गुण है प्रेम । हर इंसान को प्यार चाहिए और वह भी निःस्वार्थ । जब आपसी समझ हो, पवित्र भावनायें हों, तब निःस्वार्थ प्रेम प्रवाहित होता है । कहते हैं ना प्रेम से पत्थर दिल भी पिघल जाता है । प्रेम ही वह अहिंसक शस्त्र है जिससे आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं । प्रेम के दो मीठे बोल से सामने वाले व्यक्ति से आपना कार्य करवा सकते हैं, उसके अंदर की बातों को जान सकते हैं क्योंकि जहाँ पर प्रेम होता है वहाँ पर अपनापन होने से कोई भी बात छिपाई नहीं जाती । यह लव love ही luck के lock की चाबी है । यह मास्टर की (master key ) है इससे कैसे भी दुर्भाग्यशाली आत्मा को भाग्यशाली बना सकते हो 

    "भगवान प्रेम है " ऐसा कहा जाता हे और प्रेम बहुत शक्तिशाली शक्ति है   

     प्रेम आत्मा का प्राकृतिक स्वभाव है   परमात्मा और सभी आत्माओं ( भाईयोंके प्रति  निःस्वार्थ प्यार को ही unconditional love कहते हैं  हम उनको प्यार करते हैं जो हमें आकर्षित करता हे अथवा हमारे जैसा है । जब हम यह शरीर और उसके धर्मजाति, वर्ण को भूल कर स्वयं को और दूसरों को एक ज्योति बिंदु (आत्मासमझेंगेतो यह देखेंगे कि सारे एक जैसे और अनोखे हैं । एक आत्मा शरीर के बग़ैर किसी दूसरी आत्मा को चोट नहीं पहुँचा सकती । जब आत्मनुभूति हासिल हो जाती हे तो हम सारे जीवित प्राणियों से जुड़  जाते हैं और विश्व को एक परिवार जैसा मानने लगते हैं । 

     

    ४.       शांति 

       सात गुणों में आत्मा का चौथा गुण है शांति  शान्ति आत्मा के गले का हार है, आत्मा का स्वधर्म है शांति सर्व सद्गुणों का राजा है । जहाँ पर आपसी समझ अर्थात ज्ञान है, पवित्र भावनायें हैं, प्रेम है, वहाँ व्यक्ति relax और सहज अनुभव करता है अर्थात वहाँ ही शांति होती है । जितना शांत में रहेंगे उतना अच्छा है । शांति में रहकर ही परमात्मा को याद कर सकते हैं । शांति की शक्ति अर्थात साइलेंस की शक्ति साइंस से भी श्रेष्ठ है । Silence  की शक्ति ही साइंस अथवा विज्ञान का आधार है । शांति की शक्ति से कितना भी बड़ा विघ्न सहज समाप्त हो जाता है और सर्व कार्य स्वतः संपन्न हो जाते हैं ।

    आज हर इंसान अपने जीवन में शांति को ढूढ़ रहा हें पर हम शांति कहाँ से पाते हे ? वास्तव में शांति आत्मा की एक प्राकृतिक अवस्था है   यदि आप पर कोई बोझ ना होताआपके कोई प्रश्न नहीं होतेना मन में कोई व्यर्थ संकल्प चल रहे होतेतो क्या होता ? यही मन की स्थिरता है जहाँ सब कुछ साफ़ और स्पष्ट है ।  यही है सच्चे मन की शांति   और इसे प्राप्त करने के लिए हमें हमारी सोच को सही दिशा देनी पड़ेगी ।  यही मन की ट्रेनिंग है , जो ध्यान अथवा राजयोग के द्वारा हम अभ्यास करते हैं ।  

     

    ५.       सुख 

        सात गुणों में आत्मा का पाँचवा  गुण है सुख । आज मनुष्य सुख को बाह्य भौतिक साधनों में ढूंढ रहा है । जब उसे मनचाही प्राप्ति मिल भी जाती है उसे क्षणिक सुख की अनुभूति ही होती है एक मृगतृष्णा की तरह और फिर दुःख के बादल उसे घेर लेते हैं । अंत में उसके हाथ हताशा ( desperation ) और निराशा ( frustration ) ही आ जाती है । आज किसी के पास health है तो wealth  नहींwealth है तो health नहीं इसलिए happiness भी नहीं क्योंकि सुख अथवा ख़ुशी के लिये दोनों का होना जरुरी है । महान आत्माओं ने कहा है कि सुख बाहर नहीं भीतर है लेकिन भीतर जाने का मार्ग ही मनुष्यों को पता नहीं है । जीवन में सच्चे सुख की प्राप्ति के लिये चार बातों की आवश्यकता है जिसके बिना सुख की केवल कल्पना ही रह जाती है । १) जब जीवन को आध्यात्मिक ज्ञान से सींचते हैं २) सम्बन्धों में पवित्र भावनाओं को पनपने देते हैं ३) निःस्वार्थ प्रेम की सरिता बहती है ४) मन में प्रसन्नता पूर्ण शांति है ।

    यदि किसी के जीवन में शांति और प्रेम है तो यह कहा जाता है कि वह खुश है । बेशकक्योंकि ख़ुशी और कुछ नहीं बल्कि आत्मा की एक आतंरिक अवस्था है ( an internal state of mind )  जब वह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से संतुष्ट अथवा तृप्त रहती है 

     

    ६.        आनंद 

        सात गुणों में आत्मा का छठा गुण है आनंद । जहाँ ये पाँचों ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शांति और सुख होंगे वहाँ जीवन में सर्वोच्च स्थिति आनंद की प्राप्ति होगी । आत्मा का वास्तविक स्वरुप ही है सत-चित-आनंदस्वरुप । परन्तु आज मानव अपने आनंद स्वरुप से इतना दूर हो गया है कि इस आनंद को ढूंढना पड़ रहा है । जिस घर में सभी आनंदित है उसे ही स्वर्ग कहा जाता है । मनुष्य जीवन का लक्ष्य है आनंद की अनुभूति करना । आनंद को श्रेष्ठ और उच्चतम इसलिए कहा गया है क्योंकि इस गुण का कोई विपरीत शब्द नहीं है जैसे सुख के साथ दुःख, प्रेम के साथ घृणा आदि । यह सुख और दुख से परे की अवस्था है । इसलिए आनंद को अलौकिक ईश्वरीय माना गया है । जब हम स्वर्णयुग में थेतब हमारी यही स्थिति थी ।राजयोग की अवस्था में आत्मा अपने रूहानी पिता परमात्मा के संग असीम आनंद का अनुभव करती है । आनंद की एक झलक पाने के लिए हमें अपनी बुद्धि भगवान के पास समर्पण करना चाहिए और सिर्फ़ उनके साथ ही सारे संबंध जोड़ना चाहिए ।    

     

    ७.      शक्ति 

       सात गुणों में आत्मा का सातवा गुण है शक्ति । जहाँ पर ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शांति, सुख, आनंद ये छः गुण हैं वहाँ मनुष्य अपने जीवन में शक्ति का अनुभव कर सकता है इसे ही आत्मशक्ति अथवा आत्मविश्वास कहा गया है । वास्तव में ये सातो गुण आत्मा का सत्य स्वरुप है । ये सिर्फ गुण नहीं है ये चैतन्य शक्तियाँ हैं । इसलिए आत्मा को कहा जाता है चैतन्य शक्ति । जब मानव इन गुणों का स्वरुप बनकर व्यवहार करता है, तब इन गुणों की चैतन्यता या उर्जा उसके स्वरुप में प्रकट होती है । आज आत्मा इन गुणों की शक्ति में कमजोर हो गयी है और यही कारण है कि व्यक्ति उन्हें बाहर ढूँढने लगता है परन्तु बाहर से इनकी प्राप्ति न होने से आत्मा कमजोरियों का शिकार हो गई और बदले में सात अवगुण- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आलस्य, इर्ष्य, द्वेष जीवन में सक्रीय हो गये ।

     जिस प्रकार 5 ज्ञानेन्द्रियाँ और 5 कर्मेन्द्रियाँ भौतिक शरीर की शक्तियाँ हैं उसी प्रकार आत्मा के भीतर भी मुख्यतः मन, बुद्धि, संस्कार रूपी तीन प्रमुख और आठ शक्तियाँ हैं । योग इन शक्तियों का स्रोत है । राजयोग के अभ्यास से हमें  इन अष्टशक्तियों की प्राप्ति होती है । वे इस प्रकार हैं १) सहन करने की शक्ति २) समाने की शक्ति ३) परखने की शक्ति ४) निर्णय करने की शक्ति ५सामना करने की शक्ति ६) सहयोग करने की शक्ति ७) विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति ८) समेटने की शक्ति   

                                                

      ७ गुणों द्वारा विश्व को सकाश

       ज्ञान :  ज्ञान का सागर परमात्मा से ज्ञान की गहरे नीले रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे  मस्तक व नयनों द्वारा यह ज्ञान की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे बुद्धि सहित सारा विश्व  ज्ञानमय हो रहा है  लाखों आत्माओं को ईश्वरीय ज्ञान का लाभ मिल रहा है 

    पवित्रता :  पवित्रता का सागर परमात्मा से पवित्रता की नारंगी रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व नयनों द्वारा यह पवित्रता की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे जल तत्व सहित सारा  विश्व पावनमय हो रहा है  ये किरणें सर्व आत्माओं को अपवित्रता से मुक्त कर रही है  इन से स्मृति,  कृति, दृष्टि एवं बोल पवित्र बन रहे हैं 

    प्रेम :  प्रेम का सागर परमात्मा से स्नेह की हरे रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व   नयनों द्वारा यह प्रेम की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे वायु तत्व सहित सारा विश्व  प्रेममय  हो रहा है  ईश्वरीय निःस्वार्थ स्नेह की अनुभूति सर्व आत्माओं को हो रही है  पूरे विश्व से वैर विरोध के बादल छंट रहे हैं 

     शान्ति :  शान्ति का सागर परमात्मा से शान्ति की आसमानी नीले रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व नयनों द्वारा यह शान्ति की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे आकाश तत्व सहित सारा विश्व शांतिमय हो रहा है  सभी के अशांति दूर हो परमशान्ति की अनुभूति हो रही है 

     सुख :  सुख का सागर परमात्मा से सुख की पीले रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व नयनों द्वारा सुख की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे अग्नि तत्व सहित सारा विश्व सुखमय हो रहा है  सर्व आत्माओं को अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति हो रही है । सर्व आत्मायें परमात्म सुख के झूले में झूल रही हैं ।

     आनंद :  आनंद का सागर परमात्मा से आनंद की बैंगनी रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व नयनों द्वारा आनंद की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे मन सहित सारा विश्व आनंदमय हो रहा है  सर्व आत्माओं को परम आनंद की अनुभूति हो रही है । भय, तनाव, मायूसी एवं असंतुष्टता समाप्त हो रही है ।

     शक्ति :  शक्ति का सागर परमात्मा से शक्ति की लाल रंग की उर्जा मुझ आत्मा को भरपूर कर मेरे मस्तक व नयनों द्वारा शक्ति की किरणें सारे विश्व में प्रवाहित हो रही है जिससे पृथ्वी तत्व सहित सारा विश्व शक्तिशाली हो रहा है  सर्व आत्माओं में अष्ट शक्तियाँ समाहित हो रही है । सभी के भय, कमजोरियाँ दूर हो रही हैं ।

     

     

    COMMENTS

    BLOGGER: 1
    1. ओमशांति
      बहुत बढ़िया ज्ञान है योगाग्नि में हवि के लिए

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