Skip to main content

Selected Sakar ( साकार) - Avyakt ( अव्यक्त ) murli - Essence ( सार ) - Hindi

  



Website link   :  Avyakt vani essence - Hindi & Eng

Main website link     : Godly Knowledge Treasures  

Main youtube site link    Godly Knowledge Treasures


18-4-21 की अव्यक्त मुरली के इन महत्वपूर्ण ज्ञान बिंदुओं पर मनन कर इसकी गहराई में उतरने लिए विशेष अटेंशन :

 

▪️   संगमयुग के श्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन की विशेषतायें यह तीनों ही आवश्यक हैं। योगी तू आत्माज्ञानी तू आत्मा और बाप समान कर्मातीत आत्मा- इन तीनों में से अगर एक भी विशेषता में कमी है तो ब्राह्मण जीवन की विशेषताओं के अनुभवी न बनना अर्थात् सम्पूर्ण ब्राह्मण जीवन का सुख वा प्राप्तियों से वंचित रहना है ।

 

▪️   साथ रहने वाले अर्थात् सहज स्वत: योगी आत्मायें। सदा सेवा में सहयोगी साथी बन चलने वाले अर्थात् ज्ञानी तू आत्मायेंसच्चे सेवाधारी। साथ चलने वाले अर्थात् समान और सम्पन्न कर्मातीत आत्मायें

 

▪️   कई भोलानाथ समझते हैं ना। तो कई बच्चे अभी भी बाप को भोला बनाते रहते हैं। भोलानाथ तो है लेकिन महाकाल भी है। अभी वह रूप बच्चों के आगे नहीं दिखाते हैं। नहीं तो सामने खड़े नहीं हो सकेंगे इसलिए जानते हुए भी भोलानाथ बनते हैंअन्जान भी बन जाते हैं। लेकिन किसलिएबच्चों को सम्पूर्ण बनाने के लिए। 


        १४-४-२१ की साकार मुरली में अव्यक्त मुरली जैसी गहराई और सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त करने वाला पुरुषार्थ दिखा । मैं स्वयं इस मुरली को पढ़ते पढ़ते इसकी गहराई में उतरता चला गया और दीप साइलेंस की और शक्ति की अनुभूति होने लगी इसलिए इसके मुख्य मुख्य पॉइंट्स को पुनः revise करने और कराने के लक्ष्य से शेयर कर रहा हूँ । जिन्होंने पढ़ा है वे पुनः पढ़ लें और जिन्होंने अब तक नहीं पढ़ा है वे जरुर पढ़े miss ना करें । इस विशेष मुरली में इन deep विषयों पर विशेष प्रकाश डाला गया है ।

 

 किस प्रकार अंतर्मुखी अवस्था में कल्याण व बह्यामुखता से अकल्याण हो जाता है

▪ सर्वोतम सच्ची सर्विस की परिभाषा और मनसा से सहयोग की आवश्यकता

▪ हर्षितमुखता के गुण से क्रोध पर विजय

▪ फर्स्ट ज्ञानसेकण्ड प्रेम याने ज्ञान बिगर प्रेम धारण करने से विचलित होने और माया के जाल में फसने की सम्भावना

▪ सम्पूर्ण समर्पण अथवा पूर्ण स्वाहा होना और ईश्वरीय मन क्या हैकैसे ईश्वर और माया के गुण कार्य करते हैं

▪ साक्षीपन की अवस्था से कैसे पास्ट के विकर्म विनाश होते हैं और फ्यूचर का भाग्य बनता है

▪ ड्रामा के गुह्य राज़ और उसको सही रीती से देखने की विधि

▪ धैर्यवत अवस्था का फाउंडेशनमहत्व और लम्बे समय के पुरुषार्थ की आवश्यकता जरुरी

 ज्ञानस्वरूप स्थिति से शांतस्वरुप अवस्था की प्राप्ति और निज शुद्ध संकल्प द्वारा अमन की अवस्था

 

·           हर एक पुरुषार्थी बच्चे को पहले अन्तर्मुख अवस्था अवश्य धारण करनी है। अन्तर्मुखता में बड़ा ही कल्याण समाया हुआ हैइस अवस्था से ही अचलस्थिरधैर्यवतनिर्माणचित इत्यादि दैवी गुणों की धारणा हो सकती है तथा सम्पूर्ण ज्ञानमय अवस्था प्राप्त हो सकती है। अन्तर्मुख न होने के कारण वह सम्पूर्ण ज्ञान रूप अवस्था नहीं प्राप्त होती क्योंकि जो भी कुछ ''महावाक्य“ सम्मुख सुने जाते हैंअगर उसे गहराई में जाकर ग्रहण नहीं करते सिर्फ उन महावाक्यों को सुनकर रिपीट कर देते हैं तो वह महावाक्यवाक्य हो जाते हैं। जो ज्ञान रूप अवस्था में रहकर महावाक्य नहीं सुने जातेउन महावाक्यों पर माया का परछाया पड़ जाता है। अब ऐसी माया के अशुद्ध वायब्रेशन से भरे हुए महावाक्य सुनकर सिर्फ रिपीट करने से खुद सहित औरों का कल्याण होने के बदले अकल्याण हो जाता है ।

 

·           ऐसा नहीं कि किसकी भूल पर सिर्फ सावधान करना इतने तक सर्विस है। परन्तु नहींउनको सूक्ष्म रीति अपनी योग की शक्ति पहुंचाए उनके अशुद्ध संकल्प को भस्म कर देनायही सर्वोत्तम सच्ची सर्विस है और साथ-साथ अपने ऊपर भी अटेन्शन रखना है। न सिर्फ वाचा अथवा कर्मणा तक मगर मन्सा में भी कोई अशुद्ध संकल्प उत्पन्न होता है तो उनका वायब्रेशन अन्य के पास जाए सूक्ष्म रीति अकल्याण करता हैजिसका बोझ खुद पर आता है और वही बोझ बन्धन बन जाता है।

 

·           तुम हर एक चैतन्य फूलों को हरदम हर्षित मुख हो रहना । जब कोई को देखो कि यह क्रोध विकार के वश हो मेरे सामने आता है तो उनके सामने ज्ञान रूप हो बचपन की मीठी रीति से मुस्कराते रहो तो वह खुद शान्तिचत हो जायेगा अर्थात् विस्मृति स्वरूप से स्मृति में आ जायेगा। भल उनको पता न भी पड़े लेकिन सूक्ष्म रीति से उनके ऊपर जीत पाकर मालिक बन जानायही मालिक और बालकपन की सर्वोच्च शिरोमणि विधि है

 

·           ईश्वर जैसे सम्पूर्ण ज्ञान रूप वैसे फिर सम्पूर्ण प्रेम रूप भी है। ईश्वर में दोनों ही क्वालिटीज़ समाई हुई हैं परन्तु फर्स्ट ज्ञानसेकण्ड प्रेम। अगर कोई पहले ज्ञान रूप बनने बिगर सिर्फ प्रेम रूप बन जाता है तो वह प्रेम अशुद्ध खाते में ले जाता है इसलिए प्रेम को मर्ज कर पहले ज्ञान रूप बन भिन्न-भिन्न रूपों में आई हुई माया पर जीत पाकर पीछे प्रेम रूप बनना है। अगर ज्ञान बिगर प्रेम में आये तो कहाँ विचलित भी हो जायेंगे। जैसे अगर कोई ज्ञान रूप बनने के बिगर ध्यान में जाते हैं तो कई बार माया में फंस जाते हैं ।

 

·           जिस घड़ी आप कहते हो कि मैं तन मन धन सहित यज्ञ में स्वाहा अर्थात् अर्पण हो मर चुकाउस घड़ी से लेकर अपना कुछ भी नहीं रहता। उसमें भी पहले तनमन को सम्पूर्ण रीति से सर्विस में लगाना है। जब सब कुछ यज्ञ अथवा परमात्मा के प्रति है तो फिर अपने प्रति कुछ रह नहीं सकताधन भी व्यर्थ नहीं गंवा सकते। मन भी अशुद्ध संकल्प विकल्प तरफ दौड़ नहीं सकता क्योंकि परमात्मा को अर्पण कर दिया। अब परमात्मा तो है ही शुद्ध शान्त स्वरूप। इस कारण अशुद्ध संकल्प स्वत: शान्त हो जाते हैं। अगर मन माया के हाथ में दे देते हो तो माया वैरायटी रूप होने के कारण अनेक प्रकारों के विकल्प उत्पन्न कर मन रूपी घोड़े पर आए सवारी करती है। अगर किसी बच्चे को अभी तक भी संकल्प विकल्प आते हैं तो समझना चाहिए कि अभी मन पूर्ण रीति से स्वाहा नहीं हुआ है अर्थात् ईश्वरीय मन नहीं बना है।

 

·           साक्षीपन की अवस्था अति मीठीरमणीक और सुन्दर है। इस अवस्था पर ही आगे की जीवन का सारा मदार है। जैसे कोई के पास कोई शारीरिक भोगना आती है। उस समय अगर वह साक्षीसुखरूप अवस्था में उपस्थित हो उसे भोगता है तो पास्ट कर्मो को भोग चुक्तू भी करता है और साथ साथ फ्युचर के लिए सुख का हिसाब भी बनाता है। तो यह साक्षीपन की सुखरूप अवस्था पास्ट और फ्युचर दोनों से कनेक्शन रखती है।

 

·            इस वैरायटी विराट ड्रामा की हर एक बात में तुम बच्चों को सम्पूर्ण निश्चय होना चाहिए क्योंकि यह बना बनाया ड्रामा बिल्कुल वफादार है। देखोयह ड्रामा हर एक जीव प्राणी से उनका पार्ट पूर्ण रीति से बजवाता है। भल कोई रांग हैतो वह रांग पार्ट भी पूर्ण रीति से बजाता है। यह भी ड्रामा की नूंध है। जब रांग और राइट दोनों ही प्लैन में नूंधे हुए हैं तो फिर कोई बात में संशय उठानायह ज्ञान नहीं है क्योंकि हर एक एक्टर अपना-अपना पार्ट बजा रहा है। जैसे बाइसकोप में अनेक भिन्न-भिन्न नाम रूपधारी एक्टर्स अपनी-अपनी एक्टिंग करते हैं तो उनको देखकिससे नफरत आवे और किससे हर्षित होवेऐसा नहीं होता है। पता है कि यह एक खेल हैजिसमें हर एक को अपना अपना गुड वा बेड पार्ट मिला हुआ है। वैसे ही इस अनादि बने हुए बाइसकोप को भी साक्षी हो एकरस अवस्था से हर्षितमुख हो देखते रहना है।

 

·           धैर्यवत अवस्था धारण करने का मुख्य फाउण्डेशन - वेट एण्ड सी। वेट अर्थात् धैर्य धरनासी अर्थात् देखना। अपने दिल भीतर पहले धैर्यवत गुण धारण कर उसके बाद फिर बाहर में विराट ड्रामा को साक्षी हो देखना है। जब तक कोई भी राज़ सुनने का समय समीप आवे तब तक धैर्यवत गुण की धारणा करनी है। समय आने पर उस धैर्यता के गुण से राज़ सुनने में कभी भी विचलित नहीं होंगे। इसलिए हे पुरुषार्थी प्राणोंजरा ठहरो और आगे बढ़कर राज़ देखते चलो। इस ही धैर्यवत अवस्था से सारा कर्तव्य सम्पूर्ण रीति से सिद्ध होता है। यह गुण निश्चय से बांधा हुआ है। ऐसे निश्चयबुद्धि साक्षी दृष्टा हो हर खेल को हर्षित चेहरे से देखते आन्तरिक धैर्यवत और अडोलचित रहते हैंयही ज्ञान की परिपक्व अवस्था है जो अन्त में सम्पूर्णता के समय प्रैक्टिकल में रहती है इसलिए बहुत समय से लेकर इस साक्षीपन की अवस्था में स्थित रहने का परिश्रम करना है। जैसे नाटक में एक्टर को अपना मिला हुआ पार्ट पूर्ण बजाने अर्थ आगे से ही रिहर्सल करनी पड़ती हैवैसे तुम प्रिय फूलों को भी आने वाली भारी परीक्षाओं से योग बल द्वारा पास होने के लिए आगे से ही रिहर्सल अवश्य करनी है। लेकिन बहुत समय से लेकर अगर यह पुरुषार्थ किया हुआ नहीं होगा तो उस समय घबराहट में फेल हो जायेंगेइसलिए पहला अपना ईश्वरीय फाउण्डेशन पक्का रख दैवीगुणधारी बन जाना है।

 

·           ज्ञान स्वरूप स्थिति में स्थित रहने से स्वत: शान्त रूप अवस्था हो जाती है। जब ज्ञानी तू आत्मा बच्चेइकट्ठे बैठकर मुरली सुनते हैं तो चारों तरफ शान्ति का वायुमण्डल बन जाता है क्योंकि वे कुछ भी महावाक्य सुनते हैं तो आन्तरिक डीप चले जाते हैं। डीप जाने के कारण आन्तरिक उन्हों को शान्ति की मीठी महसूसता होती है  अब इसके लिए कोई खास बैठकर मेहनत नहीं करनी है परन्तु ज्ञान की अवस्था में स्थित रहने से यह गुण अनायास आ जाता है। तुम बच्चे जब सवेरे सवेरे उठकर एकान्त में बैठते हो तो शुद्ध विचारों रूपी लहरें उत्पन्न होती हैंउस समय बहुत उपराम अवस्था होनी चाहिए। फिर अपने निज़ शुद्ध संकल्प में स्थित होने से अन्य सब संकल्प आपेही शान्त हो जायेंगे और मन अमन हो जायेगा  जब आन्तिरक बुद्धियोग कायदे प्रमाण होगा तो तुम्हारी यह निरसंकल्प अवस्था स्वत: हो जायेगी।  ओम् शान्ति 

9-04-21 की साकार मुरली से योग व देही अभिमानी स्थिति इस विषय पर चुने हुए कुछ विशेष ज्ञान बिंदु अथवा विधि

 

योग का महत्त्व ज्ञान की तुलना में और उसकी यथार्थ विधि :

 

🔥  सिर्फ चक्र को जानने से इतना फायदा नहीं हैजितना अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करने में फायदा है। मैं आत्मा स्टार हूँ। फिर बाप भी स्टार अति सूक्ष्म है। वही सद्गति दाता है। उनको याद करने से ही विकर्म विनाश होने हैं। इस तरीके से कोई भी निरन्तर याद नहीं करते। देही-अभिमानी नहीं बनते हैं। घड़ी-घड़ी यह याद रहे मैं आत्मा हूँ। बाप का फरमान है मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। मैं बिन्दी हूँ। यहाँ पार्टधारी आकर बना हूँ। मेरे में 5 विकारों की कट चढ़ी हुई है। आइरन एज़ में हैं। अब गोल्डन एज़ में जाना है इसलिए बाप को बहुत प्यार से याद करना है। इस रीति बाप को याद करेंगे तब कट निकल जायेगी।

 

🔥 मैं आत्मा हूँमेरे में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाप भी बिन्दी हैउनमें सारा ज्ञान है। उनको याद करना है। यह बातें कोई भी समझते नहीं। मुख्य बात समझते नहीं हैं।

 

🔥 आत्मा क्या हैउनमें कैसे 84 जन्मों का पार्ट है। वह भी अविनाशी है। यह याद करनाअपने को बिन्दी समझना और बाप को याद करना जिससे विकर्म विनाश हों - इस योग में कोई भी तत्पर नहीं रहते हैं। इस याद में रहें तो बहुत लवली हो जाएं।

 

🔥 बच्चे सिर्फ ज्ञान का चक्र बुद्धि में फिराते हैं। बाकी मैं आत्मा हूँबाबा से हमको योग लगाना हैजिससे आइरन एज़ से निकल गोल्डन एज़ में जायेंगे। मुझ आत्मा को बाप को जानना हैउसकी याद में ही रहना है, यह बहुतों का अभ्यास कम है। सजा न खाने का उपाय है सिर्फ याद में रहना। योग ठीक नहीं होगा तो धर्मराज की सज़ायें खायेंगे।

 

देही अभिमानी बनने और ऊँच पद पाने की विधि :

 

🪔 देही-अभिमानी बहुत शान्त रहते हैं। समझते हैं मुझे साइलेन्स में जाना है। निराकारी दुनिया में जाकर विराजमान होना है। हमारा पार्ट अभी पूरा हुआ। बाप का रूप छोटा बिन्दी। वह कोई बड़ा लिंग नहीं है। बाबा बहुत छोटा है। वही नॉलेजफुलसर्व के सद्गति दाता हैं। मैं आत्मा भी नॉलेजफुल बन रहा हूँ। ऐसा चिंतन जब चले तब ऊंच पद पा सकें।

 

🪔 जब अपने को आत्मा निश्चय कर बाप को याद करें तब सफलता मिले। नहीं तो सफलता बहुत थोड़ी मिलती है। समझते हैं हमारे में बहुत अच्छा ज्ञान है। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी हम जानते हैं। परन्तु योग का चार्ट नहीं बताते हैं। मुश्किल कोई हैं जो इस अवस्था में रहते हैं अर्थात् अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हैं। ओम शांति


 

         रविवार 4-4-21 याने 6-12-87 की रिवाइज्ड अव्यक्त मुरली जिसका टाइटल है  सिद्धि का आधार - श्रेष्ठ वृत्ति' बहुत ही पावरफुल और सारगर्भित लगा । उसमें से चुने हुए कुछ मुख्य व महत्वपूर्ण ज्ञान रत्न ब्राह्मण परिवार में लाभार्थ शेयर कर रहा हूँ ताकि जिन्होंने अब तक पूरी मुरली नहीं पढ़ी है वे सार रूप में अवश्य पढ़ लें ।

 

·           हर एक विशेषता वा गुण का महत्व समय पर होता है । होते हुए भी समय पर कार्य में नहीं लगाते तो अमूल्य होते हुए भी उसका मूल्य नहीं होता  जिस समय जो विशेषता धारण करने का कार्य है उसी विशेषता का ही मूल्य है। इसी से नंबर बन जाते हैं । परखना और निर्णय करना यही दोनों शक्तियां नम्बर आगे ले जाती हैं। जब यह दोनों शक्तियां धारण हो जाती तब समय प्रमाण उसी विशेषता से कार्य ले सकते। होलीहंस अर्थात् समय प्रमाण विशेषता वा गुण को परख कर वही समय पर यूज़ करे।

 

·          चाहे स्थूल कार्य अथवा रूहानी कार्य हो लेकिन दोनों में सफलता का आधार परखने और निर्णय करने की शक्ति है। किसी के भी सम्पर्क में आते होजब तक उसके भाव और भावना को परख नहीं सकते और परखने के बाद यथार्थ निर्णय नहीं कर पातेतो दोनों कार्य में सफलता नहीं प्राप्त होती - चाहे व्यक्ति हो वा परिस्थिति हो क्योंकि व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी आना पड़ता है और परिस्थितियों को भी पार करना पड़ता है। जीवन में यह दोनों ही बातें आती हैं। तो नम्बरवन होलीहंस अर्थात् दोनों विशेषताओं में सम्पन्न।

 

·          विधि का आधार है श्रेष्ठ वृत्ति। अगर श्रेष्ठ वृत्ति है तो यथार्थ विधि भी है और यथार्थ विधि है तो सिद्धि श्रेष्ठ है ही है। तो विधि और सिद्धि का बीज वृत्ति है। श्रेष्ठ वृत्ति सदा भाई-भाई की आत्मिक वृत्ति हो। यह तो मुख्य बात है ही लेकिन साथ-साथ सम्पर्क में आते हर आत्मा के प्रति कल्याण कीस्नेह कीसहयोग कीनि:स्वार्थपन की निर्विकल्प वृत्ति होनिरव्यर्थ-संकल्प वृत्ति हो।

 

·         आप कहो न कहोसोचो न सोचो लेकिन व्यक्तिप्रकृति - दोनों ही सदा स्वत: ही स्वमान देते रहेंगे। संकल्प-मात्र भी स्वमान के प्राप्ति की इच्छा से स्वमान नहीं मिलेगा। निर्मान बनना अर्थात् पहले  आपकहना। निर्मान स्थिति स्वत: ही स्वमान दिलायेगी।*

 

·       दोनों स्लोगन पहले आप'' और पहले मैं' - दोनों आवश्यक हैं। लेकिन जहाँ पहले मैंहोना चाहिए वहाँ पहले आपकर देतेजहाँ पहले आपकरना चाहिए वहाँ पहले मैंकर देते। बदली कर देते हैं। जब कोई स्व-परिवर्तन की बात आती है तो कहते हो पहले आप', यह बदले तो मैं बदलूँ।  और जब कोई सेवा का या कोई ऐसी परिस्थिति को सामना करने का चांस बनता है तो कोशिश करते हैं - पहले मैंमैं भी तो कुछ हूँमुझे भी कुछ मिलना चाहिए। तो जहाँ पहले आपकहना चाहिएवहाँ मैंकह देते। सदा स्वमान में स्थित हो दूसरे को सम्मान देना अर्थात् पहले आपकरना।सिर्फ मुख से कहो पहले आपऔर कर्म में अन्तर हो - यह नहीं। स्वमान में स्थित हो स्वमान देना है

 

·          एक होती है अभिमान की वृत्तिदूसरी है अपमान की वृत्ति। जो स्वमान में स्थित होता है और दूसरे को स्वमान देने वाला दाता होताउसमें यह दोनों वृत्ति नहीं होगी - यह तो करता ही ऐसा हैयह होता ही ऐसा हैतो यह भी रॉयल रूप का उस आत्मा का अपमान है।

 

·        स्वमान की परिस्थितियों में पहले आपकहना अर्थात् बाप समान बनना। जैसे ब्रह्मा बाप ने सदा ही स्वमान देने में पहले जगत् अम्बा पहले सरस्वती माँपीछे ब्रह्मा बाप रखा। ब्रह्मा माता होते हुए भी स्वमान देने के अर्थ जगत् अम्बा माँ को आगे रखा। हर कार्य में बच्चों को आगे रखा और पुरूषार्थ की स्थिति में सदा स्वयं को पहले मैंइंजन के रूप में देखा। इंजन आगे होता है ना। सदा यह साकार जीवन में देखा कि जो मैं करूँगा मुझे देख सभी करेंगे। तो विधि मेंस्व-उन्नति में वा तीव्र पुरूषार्थ की लाइन में सदा पहले मैंरखा।

 

·          होली का अर्थ सुनाया था ना। एक होली अर्थात् पवित्र और हिन्दी में हो ली अर्थात् बीती सो बीती। तो जिनकी बुद्धि होली अर्थात् स्वच्छ है और सदा ही जो सेकण्डजो परिस्थिति बीत गई वह हो ली - यह अभ्यास हैऐसी बुद्धि वाले सदा होली अर्थात् रूहानी रंग में रंगे हुए रहते हैंसदा ही बाप के संग के रंग में रंगे हुए हैं।


Comments

Popular Posts

आत्मा के ७ गुण और सकाश - Hindi

                         Download pdf file - Hindi  :        आत्मा के ७ गुण और सकाश Website link -  :     Meditation Methods - Hindi & Eng Main Audio link :  Swaman - Hindi                                 Swaman - Eng  Youtube link - Hindi :       7 गुण स्वमान २१ बार Main website link      :   Godly Knowledge Treasures        Main youtube site link     :  Godly Knowledge Treasures आत्मा के ७ मौलिक स्वभाव  ( गुण ) परमात्मा से विरासत में मिली हुई आत्मा के सात जन्मजात गुण हैं ।   आत्मा अष्ट शक्तियाँ और सात गुणों सहित एक चैतन्य ज्योति बिंदु है   ।   आत्मा के सात गुण हैं   पवित्रता   ,  शांति ,  प्रेम ,  सुख ,  आनंद ,  शक्ति और ज्ञान   । जब हम अपने   आत्मिक स्वरुप   में स्थित रहते हैं तब आत्मा के सातो गुणों की महक से आत्मा में एक विशेष चमक बढ़ जाती है जो प्रायः किसी भी आत्मा को अपनी तरफ चुम्बक की तरह आकर्षित कर लेती है जैसे हम हरियाली की तरफ आकर्षित होते हैं । इसलिए ही बाबा ने हमें   रूप बसंत   बन कर रहने का डायरेक्शन देते हैं अर्थात   अपने को आत्म निश्चय कर आत्मा के सातो गुणों में रमण

7 Virtues of soul & sakash - Eng

  Download pdf file - Eng :         7 virtues of soul & sakash Website link -  :     Meditation Methods - Hindi & Eng Main Audio link :  Swaman - Hindi                                 Swaman - Eng  Youtube link - Eng :     7 virtues self-respect 21 times Main website link      :   Godly Knowledge Treasures        Main youtube site link     :  Godly Knowledge Treasures 7 fundamental virtues (qualities) of soul   The soul inherited from God has seven inborn qualities. The soul is a Chaitanya Jyoti or conscious point of light with 8 powers and 7 qualities.   The seven qualities of the soul are purity, peace, love, happiness, bliss, power and knowledge. When we are situated in our spiritual form , then there is a special glow in the soul due to the aroma of the seven qualities of the soul, which often attracts any soul towards us like a magnet, as we are attracted to greenery. That is why Baba gives us the direction to live in the form of Roop Basant (spring), that is, to make o

५ स्वरुप अभ्यास की दस विधियाँ - 5 forms practice using 10 methods Hindi & Eng

ओम शांति, प्रिय दैवी भाईयों और बहनों, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस व मम्मा स्मृति दिवस के सुअवसर पर इस समाप्ति वर्ष में बाबा का यह दूसरा नवीनतम प्रोजेक्ट - ५ स्वरुप अभ्यास की दस विधियाँ ब्राह्मण परिवार को तीव्र पुरुषार्थ द्वारा स्व उन्नति हेतु शेयर कर रहा हूँ । इस प्रोजेक्ट में पाँच स्वरुप अभ्यास के दस विभिन्न प्रकार की विधियाँ दर्शायी गयी है जिसका अभ्यास कर हम स्वयं भी लाभान्वित होवें और दूसरों को भी करायें , इसलिए आप को इसे अपने संपर्क में शेयर करना अत्यावश्यक है । वह १० विधियाँ इस प्रकार से है : १)    बेसिक पाँच स्वरुप अभ्यास   २)    तीन अवस्थाओं द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास   ३)    पाँच स्वरुप द्वारा पाँच स्वरूपों की माला को सकाश ४)    सात गुणों द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास ५)    अष्ट शक्तियों द्वारा पाँच स्वरुप अभ्यास ६)    त्रिमूर्ति के विभिन्न संबंधों से पाँच स्वरुप अभ्यास ७)    पाँच स्वरुप द्वारा पाँच विकारों को सकाश ८)    पाँच स्वरुप द्वारा पाँच तत्वों को सकाश ९)