इस पोस्ट में जानिए कैसे आत्मिक संतुष्टता से ही सच्ची संतुष्टता की प्राप्ति होती है । Know in this post how to achieve true satisfaction
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संतुष्टता
आत्मिक प्रसन्नता से सच्ची संतुष्टता
· संतुष्टता ही सबसे बड़ा गुण है … जो knowledgeful हैं, वह संतुष्ट है … जो संतुष्ट है, वह त्रिकालदर्शी है … जहाँ संतुष्टता है, वहाँ धैर्यता, अन्तर्मुखता, हर्षितमुखता, मधुरता, शीतलता, निर्भयता, निर्माणता आदि सारे गुण आ जाते हैं ।
· जो अपनी seat पर set है वो संतुष्ट हैं … जो संतुष्ट हैं, वो ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, शान्ति स्वरूप, शक्ति स्वरूप और सुख स्वरूप है … वो अचल-अडोल, एकरस, स्थिर, हल्का और बाप के समीप होगा ।
· जितनी संतुष्टता है, उतनी खुशी है … जितनी खुशी है उतना ही आप हल्के रहते हो, फिर अपने सारे हिसाब-किताब चाहे तन के, धन के, सम्बन्ध-सम्पर्क के बड़ी ही सहजता से चुक्तू कर सकते हो। तब अपने पुरूषार्थ से भी आप बहुत संतुष्ट रहते हो और कभी अलबेले या दिलशिकस्त नहीं होते ।
· कहते हैं कि प्रशंशा मीठा जहर और आलोचना कड़वी औषधि है किन्तु आज हालात ऐसे हैं कि बिना इस मीठे जहर के हमारा जीना मुश्किल हो जाता है । हमारी प्रशंशा हो इसके लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं । लेकिन हम भूल जाते हैं कि जो प्रसन्न हैं, वही प्रशंशा के पात्र हैं और प्रसन्न रहने की सरल विधि है सदा संतुष्ट रहना । कहा भी गया है संतोषी सदा सुखी ।
· संतुष्टता मानव जीवन का श्रृंगार है । जो संतुष्ट रहता है उसके चेहरे से वह चमक के रूप में दृष्टिगोचर होता है । संतुष्टता तीन प्रकार की होती है, एक – ईश्वर से संतुष्ट अर्थात जो, जितना, जैसा और जो भी ईश्वर ने दिया, उसमें संतुष्ट रहना, दूसरा – अपने आप से संतुष्ट अर्थात अपने आप को अपने गुण-अवगुणों के साथ स्वीकार करना और तीसरा – सर्व सम्बन्ध और संपर्क से संतुष्ट अर्थात हर आत्मा को उनके गुण- अवगुणों के साथ स्वीकार करते हुए हर एक के अंदर कोई न कोई सकारात्मकता खोजना । संतुष्टता की निशानी प्रत्यक्ष रूप से प्रसन्नता में दिखाई देगी और इसी प्रसन्नता के आधार पर प्रत्यक्ष फल यह होगा कि ऐसी आत्मा की सदा स्वतः ही सर्व द्वारा प्रशंशा होगी ।
· हम अक्सर करके अपनी जीवन यात्रा के दौरान, रास्ते में आने वाले नजारों अथवा सीन को देखकर यह क्यों, यह क्या, यह ऐसे क्यों या यह ऐसे नहीं वैसे नहीं जैसे बेकार के मुद्दों को पकड़ के बैठ जाते हैं और नजारों में ही खामियां निकालने अथवा सुधारने में अपना अमूल्य समय गवां देते हैं । वाह नज़ारा वाह कह प्रशंशा करने के बदले व्हाई व्हाई अर्थात क्यों, क्या, कैसे में बुरी तरह फंस जाते हैं इसलिए फिर चलते- चलते थक कर रुक जाते हैं, थकने के कारण फिर परमात्मा को दोष देना शुरू कर देते हैं कि मेरे जीवन में ही क्यों इतनी सब समस्याएं आपने भेज दी ? मैनें इतने भी क्या पाप किये हैं जो मुझे इतना सब सहन करना पड़ रहा है ? परन्तु यह सब शिकायतें करने में हम यह भूल जाते हैं कि सहन करना ही आगे बढ़ना है, यह सहन करने की फीलिंग हमें अपनी कमजोरी के कारण ही अनुभूति होती है । जैसे आग का गुण है जलाना, छुरी का गुण है काटना लेकिन उसके इस गुण का ज्ञान न होने कारण या सही जगह उपयोग न करने के कारण उस द्वारा लाभ लेने के बजाय हम हानि कर बैठते हैं तो सुख के बजाय सहन ही करना पड़ता है क्योंकि ज्ञान के अभाव में हम वस्तु के सदुपयोग के बजाय स्वयं को जला बैठते हैं या चोट पहुंचा देते हैं, ठीक इसी प्रकार से हम सभी अपने जीवन में आने वाली समस्याएँ वा परिस्थितियों के कारण का ज्ञान न जानने की वजह से आगे बढ़ने के सुख के अनुभव के बजाय सहन करने का दुःख अनुभव करते हैं, इसलिए फिर हमें जीवन सहज के बजाय संघर्षमय प्रतीत होने लगता है । ऐसे मनुष्य फिर स्वयं से और परमात्मा से असंतुष्ट रहते हैं जिसके परिणाम स्वरुप वे प्रसन्न अथवा खुश नहीं रह पाते हैं और उनकी अवस्था स्थायी प्रसन्न वाली नहीं रह पाती कभी प्रसन्न तो कभी उदास । ओम् शान्ति ।
SATISFACTION
TRUE CONTENTMENT THROUGH SOUL SATISFACTION
· Satisfaction is the greatest virtue… Those who are knowledgeful, they are satisfied… One who is satisfied is trikaldarshi (knower of 3 aspects of time) … Where there is satisfaction, there comes all the qualities of patience, introversion, cheerfulness, sweetness, coolness, fearlessness, creativity etc.
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· We often do this during our life journey, looking at the scenes or scenes coming in the way, why this, what this, why this or why not in this way or that way and get caught up in useless issues and try to remove flaws in the passing scenes or waste our precious time in improving. Instead of praising the scenes saying Vow Vow, we get stuck badly in Why, What and How. So get tired and stop walking. Due to being tired, then start blaming God, why did you send so many problems in my life? what sins have I committed so much that I have to bear so much? But in making all these complaints, we forget that to bear is to move forward, the feeling of enduring is due to our weakness.
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· Such people then remain dissatisfied with themselves and God, as a result of which they are unable to remain happy or remain in a state of constant happiness, sometimes happy or sometimes sad. Om shanti.
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