सामान्य प्रश्न – उत्तरों का संग्रह प्रस्तुत है जिसे बी.के भाई बहनों ने इ-मेल और whatsapp के जरिये पूछे थेI Sharing Q&A -General compilations
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सामान्य प्रश्न – उत्तर
आप के समक्ष सामान्य प्रश्न –
उत्तरों का संग्रह प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे अनेक बी.के भाई बहनों ने इ-मेल और whatsapp के जरिये पूछे थे । आशा करता हूँ इससे अन्य
आत्माओं को भी अवश्य लाभ पहुंचेगा जिससे उनकी शंका समस्याओं का समाधान मिलेगा ।
( सभी अन्य प्रश्न
– उत्तर के लिये pdf file जरुर देखें )
Questions_Answers- General
Sharing compilations of Questions_Answers- General which has been asked by various B.K brothers and sisters
through E-mail and Whatsapp . Hope it would definitely
benefit other souls in terms of solution to their doubts and problems.
( Do refer pdf file for all other Question – Answers )
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Q 47: बाबा कहते हैं आपके जड़ चित्रों से आज तक भक्त
लोगों को सुख शांति का अनुभव होता हे कैसे? मूर्ति मे तो मूर्ति बनाने वाले ,पंडित ,मूर्ति स्थापना
करने वालों की vibration होती हे यह समझना है ।
आत्मा एक चैतन्य सत्ता एवं ऊर्जा है जिसका प्रभाव पञ्च प्रकृति
अथवा 5
तत्वों पर पड़ता है । देखा जाये तो मूर्तियाँ तो जड़ है परंतु संसार की
प्रत्येक जड़ वस्तु में energy, frequency, vibration होती है । मूर्तियों में उसके बनाने वाले की vibration, पंडित के व उसकी स्थापना करने वाले की vibration जरूर रहती होगी । परंतु वह व्यक्तिगत क्रिया
होने से अथवा उसके पीछे कोई विशेष संकल्प न होने से उसका वाइब्रेशन भी प्रभावी
नहीं होता अथवा फलीभूत होता हुआ नहीं दीखता है लेकिन जब उसी मूर्ति की किसी विशेष
विधि से स्थापना कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और पुजारी से लेकर भक्तगण
शुद्ध भावना एवं निश्चयबुद्धि से नित्य उसकी पूजा अर्चना अथवा प्रार्थना शुरू कर
देते हैं तब वह एक जिवंत मूर्ति का रूप धारण कर लेती है और अनेकानेक भक्त आत्माओं
की मनोकामनाएँ पूर्ण करने के निमित्त बनती है जैसे कि अब वह जड़ नहीं बल्कि एक
चैतन्य मूर्ति का स्वरुप बन गयी हो । वर्तमान समय बाबा हम ब्राह्मण आत्माओं की ही अपना दैवी स्वरुप की
स्मृति दिला रहे हैं कि तुम्हारा ही वह जड़ यादगार है जो तुम संगम पर चैतन्य रूप में उनकी सुख शान्ति मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनको
मुक्ति जीवनमुक्ति देते हो। जब जड़ यादगार भी अल्पकाल की प्राप्ति करा सकती है तो
चैतन्य रूप में की गयी स्थूल सूक्ष्म सेवा साक्षात प्रत्यक्ष फल देने के निमित्त
क्यों नहीं बनेगी । जड़ रूप में होती है अल्पकाल की प्राप्ति और अब चैतन्य रूप में
कराते हैं सदा काल की प्राप्ति यह अंतर है। यही सेवा हमें वर्तमान संगम में करना
है जिससे वह द्वापर से यादगार बन जाये। ओम शांति
Q 48: कृपया हद और बेहद का स्पष्टीकरण कीजिए ?
हद याने जिसकी सीमा अर्थात बाउंड्री निर्धारण किया जा सके ( limited) । जिसको अपनी इन्द्रियों से मापा जा सके, जिसकी गणना हो सके और बेहद याने सीमारहित अंतहीन
जिसको मापने के दायरे में नहीं ले सकते, जिसकी गिनती नहीं कर सकते ( unlimited) । मुरलियों में भी यह शब्द बार बार आता है जैसे
कुछ दिन पहले की मुरली में हद बेहद की बात आयी थी जिसमें सतयुग को हद की दुनिया और
कलियुग को बेहद की दुनिया कहा गया है क्योंकि सतयुग में कलियुग की तुलना में
जनसंख्या बहुत ही कम होती है जबकि कलियुग में यह वृद्धि होते होते करोड़ो तक पहुँच
जाती है अर्थात बेहद में चली जाती है । इसी तरह बेहद शब्द सागर और आकाश के लिये भी
इस्तेमाल होता है कि इनको कोई मापने का प्रयत्न भी करे तो भी इन्हें किसी भी साधन
से माप नहीं सकते क्योंकि ये बेअंत हैं इनका कोई अंत नज़र नहीं आता । परमात्मा
स्वयं को हद और बेहद की दुनिया से परे कहते हैं क्योंकि वे इनकी सीमा से परे हैं, इसको जानते जरुर हैं लेकिन इनके बंधन अथवा चक्र में
नहीं आते हैं । हमें भी बाबा इस हद बेहद की दुनिया से पार जाने को कहते हैं, यह दोनों दुनिया है 5 तत्वों की दुनिया अथवा साकारी दुनिया लेकिन जब
हम इन दोनों से परे अपने निराकारी स्वरुप में निराकारी दुनिया में स्थिति होते हैं
तब इन दोनों से पार हो जाते हैं । इन बातों को समझने को लिये चाहिए बेहद की बुद्धि
अथवा विशाल बुद्धि । ओम शांति
Q 49: भाईजी... मुझे बाबा मिलन के बारे में कुछ पता
नहीं.. इसको बाप दादा मिलन भी कहा जाता है क्या? दादी गुलजार के तन मे सिर्फ शिवबाबा आते हें या फिर ब्रह्मा बाबा
भी आते हें... मै ग्यान में नया हू.. कृपया थोड़ा स्पष्टीकरण चाहिए
ओम शांति । मैं आप को मुरली के आधार पर बता सकता हूँ जो इस प्रकार
है । ब्रह्मा बाबा को शिव बाबा का साकार माध्यम बताया है । इसलिये जब तक वे साकार
देह में थे तब जो मुरलियाँ चली उसे साकार मुरली कहते हैं । इसलिए उस समय की साकार
मुरलियों में ज्यादातर शिवभगवानुवच यह शब्द बारम्बार आया है । लेकिन जब ब्रह्मा
बाबा अव्यक्त हुए तब दादी गुलज़ार साकार अव्यक्त माध्यम बनी । पहले जब ब्रह्मा बाबा साकार में थे तब शिवबाबा
ब्रह्मा तन में डायरेक्ट प्रवेश कर महावाक्य चलाते थे फिर जब वे 18 Jan 1969 को अव्यक्त हुए तब शिवबाबा ब्रह्मा बाबा के
सूक्ष्म तन और दादी गुलज़ार के साकारी तन का आधार लेकर महावाक्य चलाने लगे इसलिए 1969 के बाद की मुरलियों को अव्यक्त वाणी कहते हैं जो हर रविवार को revise होती है और उनमें ज्यादातर बाप दादा यह शब्द बारम्बार आता है ।
बाबा याने शिवबाबा और दादा याने ब्रह्मा बाबा को संबोधित करते हैं । दादी के
माध्यम से इन दोनों के कंबाइन महावाक्य चलते हैं । हाँ इतना फर्क जरूर है साकार
मुरलियों में बीच बीच में ब्रह्मा बाबा के भी वाक्य सुनने को मिलता है क्योंकि
उनकी आत्मा भी उस समय active याने जागृत रहती थी लेकिन अव्यक्त वाणी चलते समय दादी गुलज़ार की
आत्मा active
नहीं रहती इसलिये उनके
चेहरे और वाणी में परिवर्तन दिखाई देता है । अब दादी की तबियत ठीक न रहने की वजह
से अव्यक्त पार्ट भी लगभग समाप्ति की ओर है । अभी बाप दादा हमें अव्यक्त में
अव्यक्त अनुभूति करने का इशारा दे रहे हैं क्योंकि समय भी समाप्ति की और बढ़ता जा
रहा है
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Anil Bhai hi..thanks for sharing your experience as is the same to same story belongs to me also. I am very very happy to read all. This story touched my heart . Keep it up and keep sending your experiences
ReplyDeleteVery happy to read all, thanks for the hard work for us, you don't not have any experience like us but even then you r solving our problems, thanks to Baba
ReplyDeleteThanks for adding our questions.. Om shanti bhaiji
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